लेखनी प्रतियोगिता -19-Feb-2023 उपकारौ का मूल्यांकन
उपकारौ का मूल्यांकन
सक्सैना साहब की टूटी फूटी झौपडी़ नुमा मकान के आगे एक नीली बत्ती गाडी़ आकर रुकी। जिसे देखकर मुहल्ले के बच्चे दोड़कर आये और देखने लगे कि इस कार में कौन आया है।
उसी समय एक गार्ड ने गाडी़ से उतरकर गाडी़ का पिछला दरवाजा खोला और उसमें से एक सूटैड बूटैड युवक उतर कर टूटी चारपाई पर बैठे हुए सक्सैना साहब के चरण स्पर्श करके बोला," सर आपने मुझे पहचाना नहीं मै महेश हूँ। "
" महेश ? " इतना कहकर वह सोचने लगे कि कौन महेश।
महेश बोला," मुन्शी काका का बेटा महेश ! जिसके स्कूल की फीस आप देते थे। आज आपके कारण ही मै ं जिले का जज बन गया हूँ यदि आप उस दिन मेरी फीस नही भरते तो मै भी अपने काका की तरह कहीं मजदूरी कर रहा होता।"
सक्सैना साहब को अब सब याद आगया।
" महेश तू आज स्कूल क्यौ नहीं आया था ?"
" सर मेरे पास स्कूल की फीस नहीं थी इस लिए स्कूल वालौ ने मेरा नाम काट दिया था। अब क्या करूँ काका को बहुत दिनौ से कोई काम नही मिला है। इस लिए फीस जमा नही हो सकी है," महेश ने जबाब दिया।
"तू मुझे बताता तू फीस की चिन्ता मत करना कल स्कूल पहुँच जाना । तेरी फीस जमा होजायेगी।" सक्सैना जी ने जबाब दिया।
महेश दूसरे दिन स्कूल पहुँच गया । सक्सैना जी ने उसकी पूरे साल की फीस जमा करवादी और आगे से महेश को कह दिया जब भी किसी भी चीज की जरूरत हो मुझे बताना लेकिन पढा़ई मत बन्द करना।
सक्सैना जी एक प्राईवेट स्कूल में साइन्स व गणित पढा़ते थे। उनके पढा़ने का सब स्कूलौ में नाम था। उनके पढा़ये हुए बच्चे बहुत बडे़ बडे़ अफसर बन गये थे। उनके अपनी कोई सन्तान नही थी। वह गरीब बच्चौ की सहायता करते थे। उनकी फीस व किताबे देते थे।
महेश की फीस भी उन्होंने बहुत दिनौ तक दी थी। बाद में महेश को स्कालरशिप मिल गयी थी। वह पढ़ने बहुत तेज था। आज वह जिले का जज बनगया था। सक्सैना जी को कोई पैन्शन नही मिलती थी उनकी पत्नी का देहान्त भी दवाऔ की कमी और समय पर इलाज न होने के कारण ही हुआ था लेकिन सक्सैनाजी ने कभी भी ट्यूशन पढा़ने के पैसे नही लिए थे।
आज भी वह गरीब बच्चौ को ट्यूशन पढा़ते थे लेकिन पैसा नही लेते थे। हाँ बच्चौ के माता पिता उनको खाने पीने का सामान अवश्य देजाते थे।
महेश की बातें सुनकर सक्सैना जी का सीना गर्व से चौडा़ होगया। सक्सैना ने महेश को भविष्य में और ऊँचे पद पर जाने की दुआऐं दी। और उसे गले लगाकर अपने पास बिठाया।
महेश बोला," सर मैं आज आपकी कुछ सेवा करना चाहता हूँ क्यौकि मुझे आज पहली तनखा मिली है मै उसे आपके चरणौ में समर्पित करना चाहता हूँ । आप मुझे ऐसा करने की इजाजत दीजिए। "ऐसा कहकर उसने अपने बैग से रुपयौ के बन्डल निकाल कर उनके चरणौ में रख दिए।"
"महेश तुम मेरे द्वारा किये गये उपकार को साहूकारिता में तौलना चाहते हो। और उसका मूल्यांकन करना चाहते हो। नहीं बेटा जैसा मैने किया था उसी तरह तुम भी बैसा ही करके इस परम्परा को इतना आगे बढा़ओ कि यह चैन कभी टूटे नहीं। गरीब बच्चे जिनके पास साधन नही है और वह कुछ करना चाहते है उनकी सहायता करो। और उनको भी यही शिक्षा दो जिससे यह कडी़ बरकरार रहे। बेटा महेश किसी के उपकार का मूल्यांकन कभी मत करना। " सक्सैनाजी ने महेश को समझाया।
महेश उनकी यह बातें सुनकर उनके पैरौ में गिरकर अपनी भूल की छमा मांगने लगा । महेश की आँखौ में आँसू आगये और उसने उनके सामने ही उसने गरीब व आसहाय बच्चौ की पढाई करवाने का संकल्प लिया।
समाप्त
आजकी दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "
Gunjan Kamal
20-Feb-2023 08:59 AM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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Punam verma
20-Feb-2023 08:20 AM
Very nice sir
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Milind salve
19-Feb-2023 10:57 PM
शानदार
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